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जब जाऊँ इस जहाँ से बस ये याद रखना, कितना शरीफ़ था य

जब जाऊँ इस जहाँ से बस ये याद रखना,
कितना शरीफ़ था ये नहीं, बस नकारा कितना हुआ ये याद रखना।
सोचना खुद भी कैसे यादों से लेखनी को जोड़ा उसने,जब भी कभी तन्हा हुआ।
सब को छोड़ा जिसकी खातिर, ना कभी उसका तो ना कभी खुद मैं मेरा हुआ।
उलझा आबंधों के भवँर में,ना जाने कब कितना छूट गया,
समेटने की जद में सोनू, बहुत कुछ चटका तो बहुत कुछ मेरा टूट गया।
बरबस जब छलक जाए कभी नीर तो पूछ भी लेना,
कहाँ तक और कितना मन मजबूर हुआ।

©अभिषेक मिश्रा "अभि"
  #अल्फ़ाज
#सोनू_की_कलम_से 
#मैं_और_मेरी_तन्हाई🚶