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“भटकाव” कस्तूरी कुंडल बसे भटके मृग

              “भटकाव”

कस्तूरी कुंडल बसे भटके मृग हर जगह।
घाट घाट पर ईश्वर बसें ढूंँढें फिरते मंदिर दरगाह।।

मिट जाती चिंता खत्म हो जाती इच्छा मन हो जाता जब लापरवाह।
जिसको ना चाहत सांसारिक सुख वही होता बादशाह।।

पेड़ ना खाता अपना फल नदी ना पीती अपना पानी।
जीवन भर क्या करता संचय कर इंसान अपना धन और संपत्ति।।

“पंछी” चंचल मन हो चला इस संसार से आध्यात्मिक बैरागी।
अब तो बस में मेरा तन और मन, “पंछी” चंचल सोकर है जागी।।

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#rzलेखकसमूह 
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#unique_upama 
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#rzwriteshindi 
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              “भटकाव”

कस्तूरी कुंडल बसे भटके मृग हर जगह।
घाट घाट पर ईश्वर बसें ढूंँढें फिरते मंदिर दरगाह।।

मिट जाती चिंता खत्म हो जाती इच्छा मन हो जाता जब लापरवाह।
जिसको ना चाहत सांसारिक सुख वही होता बादशाह।।

पेड़ ना खाता अपना फल नदी ना पीती अपना पानी।
जीवन भर क्या करता संचय कर इंसान अपना धन और संपत्ति।।

“पंछी” चंचल मन हो चला इस संसार से आध्यात्मिक बैरागी।
अब तो बस में मेरा तन और मन, “पंछी” चंचल सोकर है जागी।।

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