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जब ईमान कम हुआ , बेईमान मन हुआ । खुद ही इतराते रह


जब ईमान कम हुआ ,
बेईमान मन हुआ ।
खुद ही इतराते रहे,
रौब सब बेदम हुआ ।
सिर चढ़ा 'मैं' का नशा ,
जख्मी शब्द 'हम'हुआ।
रूप-नूर क्यों घटा,
मन को यही गम हुआ।
यूँ तो चहल पहल थी ,
मेहफिल और बाजार मे।
फिर क्यों अकेले खड़े ,
और कोई ना हमदम हुआ‌।
पुष्पेन्द्र पंकज

©Pushpendra Pankaj
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