गुजरी अभी यहाँ तक शिक़ायत से ज़िन्दगी । जैसे मिली मुझे हो बगावत से ज़िन्दगी ।। अब तक हमें उसी ने लूटा है इस कदर । कैसे जिएँ बताओ शराफ़त से ज़िन्दगी । सब कुछ गवाँ दिया था जीने की चाह में । फिर भी मिली न मुझको इज्ज़त से ज़िदगी ।। लेकर चलो हमें तुम अब अपने गाँव में । शायद मिलें वही अब राहत से ज़िन्दगी ।। कितने नियम बनाये परिवाहन विभाग ने । चलता रहे प्रखर तो हिफ़ाज़त से ज़िन्दगी ।। २२/०२/२०२३ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR गुजरी अभी यहाँ तक शिक़ायत से ज़िन्दगी । जैसे मिली मुझे हो बगावत से ज़िन्दगी ।। अब तक हमें उसी ने लूटा है इस कदर । कैसे जिएँ बताओ शराफ़त से ज़िन्दगी । सब कुछ गवाँ दिया था जीने की चाह में । फिर भी मिली न मुझको इज्ज़त से ज़िदगी ।।