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गुजरी अभी यहाँ तक शिक़ायत से ज़िन्दगी । जैसे मिली मु

गुजरी अभी यहाँ तक शिक़ायत से ज़िन्दगी ।
जैसे मिली मुझे हो बगावत से ज़िन्दगी ।।

अब तक हमें उसी ने लूटा है इस कदर ।
कैसे जिएँ बताओ शराफ़त से ज़िन्दगी ।

सब कुछ गवाँ दिया था जीने की चाह में ।
फिर भी मिली न मुझको इज्ज़त से ज़िदगी ।।

लेकर चलो हमें तुम अब अपने गाँव में ।
शायद मिलें वही अब राहत से ज़िन्दगी ।।

कितने नियम बनाये परिवाहन विभाग ने ।
चलता रहे प्रखर तो हिफ़ाज़त से ज़िन्दगी ।।

२२/०२/२०२३    -   महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR गुजरी अभी यहाँ तक शिक़ायत से ज़िन्दगी ।
जैसे मिली मुझे हो बगावत से ज़िन्दगी ।।

अब तक हमें उसी ने लूटा है इस कदर ।
कैसे जिएँ बताओ शराफ़त से ज़िन्दगी ।

सब कुछ गवाँ दिया था जीने की चाह में ।
फिर भी मिली न मुझको इज्ज़त से ज़िदगी ।।
गुजरी अभी यहाँ तक शिक़ायत से ज़िन्दगी ।
जैसे मिली मुझे हो बगावत से ज़िन्दगी ।।

अब तक हमें उसी ने लूटा है इस कदर ।
कैसे जिएँ बताओ शराफ़त से ज़िन्दगी ।

सब कुछ गवाँ दिया था जीने की चाह में ।
फिर भी मिली न मुझको इज्ज़त से ज़िदगी ।।

लेकर चलो हमें तुम अब अपने गाँव में ।
शायद मिलें वही अब राहत से ज़िन्दगी ।।

कितने नियम बनाये परिवाहन विभाग ने ।
चलता रहे प्रखर तो हिफ़ाज़त से ज़िन्दगी ।।

२२/०२/२०२३    -   महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR गुजरी अभी यहाँ तक शिक़ायत से ज़िन्दगी ।
जैसे मिली मुझे हो बगावत से ज़िन्दगी ।।

अब तक हमें उसी ने लूटा है इस कदर ।
कैसे जिएँ बताओ शराफ़त से ज़िन्दगी ।

सब कुछ गवाँ दिया था जीने की चाह में ।
फिर भी मिली न मुझको इज्ज़त से ज़िदगी ।।

गुजरी अभी यहाँ तक शिक़ायत से ज़िन्दगी । जैसे मिली मुझे हो बगावत से ज़िन्दगी ।। अब तक हमें उसी ने लूटा है इस कदर । कैसे जिएँ बताओ शराफ़त से ज़िन्दगी । सब कुछ गवाँ दिया था जीने की चाह में । फिर भी मिली न मुझको इज्ज़त से ज़िदगी ।। #शायरी