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जागती आंखों के सपनों में , डूब जाता है ये मन कल्पन

जागती आंखों के सपनों में ,
डूब जाता है ये मन
कल्पना के उस अथाह सागर में !
मन उम्मीदों की परवाज़ भरकर ,
छा जाता है ज्यों ही उस नभ पर ,
त्यों ही बरस उठता है ये मन घटायें बनकर !
कल्पना के उस अथाह सागर की गहराईयों में ,
मन ढूंढ़ता है हकीकत की उन परछाईयों को ,
जो दे जाती है सलोना सपना इन आंखों को !
जब ये सपने रह जाते है अधूरे ,
ज़िंदगी में कोरे कागज़ की तरह ,
तब ये सपने कभी न होते पूरे
और बह जाते है आंखों से 
निश्छल पानी की तरह !
सोती आंखों के सपनों में ,
नई भोर के उजालों में ,
खो जाता है वो सपना ,
समय के घनघोर अंधेरों में !
एक धुंध-सी छा जाती है उस पर ,
और रह जाता है वो सिर्फ ‘ एक अधूरा सपना ‘ !

©Sonal Panwar
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