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इस मधुर मिलन की बेला पर,वो शब्द कहाँ से लाऊँ मैं।

इस मधुर मिलन की बेला पर,वो शब्द कहाँ से लाऊँ मैं।
किरन बनी जीवन की कलिका, यह सोच खड़ा मुस्काऊँ मैं।।
जीवन पथ का एक मुसाफिर, हाथ बढ़ाकर माँग रहा है।
तन्हा जीवन की पगडंडी पर,जीवन ज्योति निहार रहा है।।

©Shubham Bhardwaj
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