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**शब्दों की माला** जीवन का प्रथम शब्द ,जब

       
**शब्दों की माला**
जीवन का प्रथम शब्द ,जब माँ  होंठो पर आया था,
उस एक  शब्द  में   तब , पूरा   सँसार  समाया था,

फिर सीखा पापा कहना,वो जीवन का ककहरा था,
मेरी ज़िंदगी  का  हर लम्हा ,उस रिश्ते में ठहरा था,

सुनकर   मेरे   पापा   जिसे  फूल सा खिल जाते थे,
बहुत  प्रेम  से  मुझे ,  तब   वो   हृदय  से लगाते थे,

गुज़री थोड़ी   उम्र ,  तो  मुझे अक्षर ज्ञान दिलाया था,
मेरी प्रिय अध्यापिका ,जिन्होंने प्रगति पथ दिखाया था,

अनेक उतार चढ़ाव से ,जीवन कितने शब्दों से गुज़रा,
कभी गिर कर कभी सँभल कर,सीखा जीवन ककहरा,

भूल गई तब सब शब्दों को ,जीवन की आपाधापी में,
एक दौर उम्र का आया , जब  पुकारा  कोरी कापी ने,

फिर निकल पड़ा कारवाँ ,  शब्दों की पहन कर माला,
याद आया फ़िर    से मुझे  ,  वही   दौर बचपन वाला।।
-पूनम आत्रेय

©poonam atrey
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