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दरवाज़ा पल्लव की डायरी सड़को से जब मकान मिल गये दहशत

दरवाज़ा पल्लव की डायरी
सड़को से जब मकान मिल गये
दहशतगर्दी के द्वार खुल गये
पहचान सबकी मुँह जबानी थी
दरवाजो की घरो में जरूरत नही थी
ना नगदी ना पैसे थे
सब अपने जैसे लगते थे
जब से  दौर तरक्की  का आया है
सबको शक के दायरे में लाया है
हिफ़ाजतो में दरबाजे ताले लग गये
ऐतवार अपनो के  करना भूल गये
                                    प्रवीण जैन पल्लव

©Praveen Jain "पल्लव" ऐतवार अपनो का करना भूल गये

#WForWriters
दरवाज़ा पल्लव की डायरी
सड़को से जब मकान मिल गये
दहशतगर्दी के द्वार खुल गये
पहचान सबकी मुँह जबानी थी
दरवाजो की घरो में जरूरत नही थी
ना नगदी ना पैसे थे
सब अपने जैसे लगते थे
जब से  दौर तरक्की  का आया है
सबको शक के दायरे में लाया है
हिफ़ाजतो में दरबाजे ताले लग गये
ऐतवार अपनो के  करना भूल गये
                                    प्रवीण जैन पल्लव

©Praveen Jain "पल्लव" ऐतवार अपनो का करना भूल गये

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