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अफसोस, मैं कुछ कह नहीं पाया कहता भी क्या इशारे किए

अफसोस, मैं कुछ कह नहीं पाया
कहता भी क्या
इशारे किए थे, तुम्हे समझ नहीं आया
मंडली जमी थी
कलियां, फूल, भौंरे, मधुप
सारे झूम रहे जो सुरा घुली थी
तुम भी थे जो फिज़ा खुली थी
मस्त, मदमस्त, बावला, पागल
शब्द कम होंगे कहने को
सब खुले थे जो हवा चली थी।

उस अवस्था से जब बाहर आना
तुम्हारे दराज में, सिंगार डब्बे के पास
जो छोटा आईना रखा है
उनके बीच में एक पत्र रखा है
वक्त मिले तो पलट लेना
पड़ते वक्त चेहरा अपना भी पढ़ लेना
गर लगे क्या पढ़ा तुमने बताना हो
मैं वहीं मिलूंगा जहां मिला करते थे
याद करना, चिरनिद्रा में खो जाना
ड्रीमलैंड में मिला करेंगे।

©@thewriterVDS
  अफसोस
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