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मिल जाती है मंज़िल उसका गुण-दोष नहीं मिलता, हर दफ़

मिल जाती है मंज़िल उसका गुण-दोष नहीं मिलता,
हर दफ़ा उगते सूरज को उसका प्रदोष नहीं मिलता,

मिल जाते हैं कुछ लोग उनका आक्रोश नहीं मिलता,
व्यंग्य कसते रहने पर भी किसीका रोष नहीं मिलता,

मिल जाता हो चाँद शायद चार दिनों की चाँदनी में, 
मगर इतना कुछ मिलने पर भी संतोष नहीं मिलता ! #कुछ_भी

#yqdidi #yqhindi #yqpoetry #yqspecial #yqbaba #satisfaction #life
मिल जाती है मंज़िल उसका गुण-दोष नहीं मिलता,
हर दफ़ा उगते सूरज को उसका प्रदोष नहीं मिलता,

मिल जाते हैं कुछ लोग उनका आक्रोश नहीं मिलता,
व्यंग्य कसते रहने पर भी किसीका रोष नहीं मिलता,

मिल जाता हो चाँद शायद चार दिनों की चाँदनी में, 
मगर इतना कुछ मिलने पर भी संतोष नहीं मिलता ! #कुछ_भी

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