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ग़ज़ल उसके होंठो पे दुआ हो जैसे । फूल पत्थर पे खिला

ग़ज़ल
उसके होंठो पे दुआ हो जैसे ।
फूल पत्थर पे खिला हो जैसे ।।१

दिल में इक दर्द उठा हो जैसे ।
तीर फिर दिल में चुभा हो जैसे ।।२

क्यों उसे देख के ये है लगता ।
खुलते होंठो को सिला हो जैसे ।।३

हाथ हाँथों में सनम ये लेकर ।
दूर कुछ साथ चला हो जैसे ।।४

उनकी बातों से यही लगता है ।
दिल में कुछ और छुपा हो जैसे ।५

वो पुकारेगा यकीं है मुझको ।
फिर भी लगता वो खफ़ा हो जैसे ।।६

जिस तरह कर रहा दिलवर खिदमत ।
बाद बरसों के मिला हो जैसे ।।७

इस तरह हाँफता है वो उठकर ।
खुद से जंग लड़ा हो जैसे ।।८

इस तरह  देखता है वो मुड़कर ।
नींद से आज जगा हो जैसे ।।९

०५/०३/२०२४    महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR ग़ज़ल


उसके होंठो पे दुआ हो जैसे ।

फूल पत्थर पे खिला हो जैसे ।।१
ग़ज़ल
उसके होंठो पे दुआ हो जैसे ।
फूल पत्थर पे खिला हो जैसे ।।१

दिल में इक दर्द उठा हो जैसे ।
तीर फिर दिल में चुभा हो जैसे ।।२

क्यों उसे देख के ये है लगता ।
खुलते होंठो को सिला हो जैसे ।।३

हाथ हाँथों में सनम ये लेकर ।
दूर कुछ साथ चला हो जैसे ।।४

उनकी बातों से यही लगता है ।
दिल में कुछ और छुपा हो जैसे ।५

वो पुकारेगा यकीं है मुझको ।
फिर भी लगता वो खफ़ा हो जैसे ।।६

जिस तरह कर रहा दिलवर खिदमत ।
बाद बरसों के मिला हो जैसे ।।७

इस तरह हाँफता है वो उठकर ।
खुद से जंग लड़ा हो जैसे ।।८

इस तरह  देखता है वो मुड़कर ।
नींद से आज जगा हो जैसे ।।९

०५/०३/२०२४    महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR ग़ज़ल


उसके होंठो पे दुआ हो जैसे ।

फूल पत्थर पे खिला हो जैसे ।।१

ग़ज़ल उसके होंठो पे दुआ हो जैसे । फूल पत्थर पे खिला हो जैसे ।।१ #शायरी