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दर्द को ऐसे लिखती हूँ शायरी की किताब हूँ मैं,, अक

दर्द को ऐसे लिखती हूँ
शायरी की किताब हूँ मैं,,

अक्सर नीरस सी रहती हूँ
ज्यादातर लाजवाब हूँ मैं

जिस सवाल के साथ फिरता है तू
उसका जवाब हूँ मैं

तू मेरी सुबह मेरी शाम ,,दिन है मेरा
बाकी तेरी आधी रात हूँ मैं

मुकम्मल न होगा वो ख्वाब है तू
शमशान की ठंडी राख हूँ मैं..!!

©Varun Goyal
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