मेरे नैनो क़ो बहुत अखरता था ज़ब देखा हुआ मेरा सपना नींद खुलते ही टूटजाता था पपीहे ने रात भर शोर मचाया था लेकिन सुबह तक एक भी मेघ बरसा नही था तिमिर ज़ब भी गहराया था जुगनूओं के झुण्ड ने जम कर उत्सव मनाया था जिस मौन क़ो बमुश्किल मैंने साधा था वो मौन नजाने क्यों आज साथ मेरा छोड़ गया था ©Parasram Arora नैनो क़ो अखरता था.....