_________________________________ शौतानियाँ बचपन की हमने कभी किया कहाँ बेबसी और लाचारी हमने जिन्दगी जिया कहाँ दर्द अस्कों के मेले थे खुशियों को पिया कहाँ वो खाली-खाली झूले थे हमने कभी झुला कहाँ वो मेले तमाशे गुब्बारे पानी पूरी के ठेले तुम भी जाओंगी क्या पापा ने कभी पूछाँ कहाँ वो पंछियों को उपर आसमाँ में झूमते-गाते एक कमरे में बंद पंछी खुद को उड़ते देखा कहाँ चुप चाप तन्हाइयों में रहना ना थी किसी से यारी दोस्ती ,कभी किसी ने दोस्त बनाया कहाँ बचपन में जब जी चाहा खुल कर रो लेते थे अब नहीं होता, बरसों से दामन भिगोया कहाँ ।।। ♥️ Challenge-594 #collabwithकोराकाग़ज़ ♥️ इस पोस्ट को हाईलाइट करना न भूलें :) ♥️ विषय को अपने शब्दों से सजाइए। ♥️ रचना लिखने के बाद इस पोस्ट पर Done काॅमेंट करें।