देखो, कल तुम फिर से आ जाना, एक-दो नई कहानी सुना जाना, और मुझे तो बिल्कुल भी मत कहना कि कहानी लिखो, क्योंकि मैं तो खुद एक कहानी बनने आया हूं, जिसको तुम लिखो, कहो, मुकम्मल करो और दिल से पढ़ो, पर यह मुमकिन भी तो नहीं है हक़ीक़त में, कहां तुम ऊंची अट्टालिकाओं के जैसी और मैं अव्यवस्थित हूं एक झुग्गी-झोंपड़ी सा, कहां तुम ऊंचे उड़ते परिंदे सी, और मैं जमीं पर रेंगते नगण्य जीव सा, कहां तुम आसमां पे चमकता हुआ, सूरज चांद-सितारा हो, और मुझ जैसे कई लोगों के जीने का एक सहारा हो, कहां तुम अविरल गंगा सी, बहती हुई एक धरा हो, और मैं एकदम जड़वत सा,जैसे नदी का एक किनारा हो... तुम देखो आप तो, प्यार से भी प्यारी हो, मैं कुंठित अपने आप में,जैसे कोई कर्मचारी सरकारी हो... और गौर कीजिएगा... तुम स्टारबक्स की एक्सप्रेसो कॉफ़ी सी उत्तम, मैं नुक्कड़ वाली चाय हूं... कहां पनीर रेशमी सी तुम कोमल, मैं ढाबे कि दाल फ्राय हूं... 11th May 2019 (10:55PM) one of the best Poetry of mine...Khichdi...pyaar ki... #abhishekism #writer #poet #poem #poets #abstract #different