बचपन और क्रिकेट वो बचपन का भी क्या जमाना था, हाथों लकड़ी का बैट और दिल क्रिकेट का दिवाना था। हर गली मे बच्चे खुद को एक वेहतरीन खिलाड़ी समझते थे। ना खाने पीने का होश, ना ढंग से कभी नहाना था। सुबह उठ कर जैसे तैसे, बस खेल के मैदान जाना था। छक्के चौके यूँ लगाते थे हम, जैसे आज नहीं घर जाना था। हर गली, हर नुक्कड़ में सब हमारे खेल का दिवाना थे। वो बचपन का भी क्या जमाना था, हाथों लकड़ी का बैट और दिल क्रिकेट का दिवाना था। स्नेहा गुप्ता #Cricket #कविता #यादें #कहानी #कला #विचार #शायरी #बचपन