तुझें भिगोने को कितना तरसता है पानी । जब भी सावन में झूमकर बरसता है पानी ।। कहीं ज़माने पर न अपना राज़ खुल जाए । पलक पे आने को दिल में सिसकता है पानी ।। @इक़बाल मेंहदी काज़मी #शायरी