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परवाना थक चुका हैं, पर जीत पाता नहीं बिना जीत नाका

परवाना थक चुका हैं, पर जीत पाता नहीं
बिना जीत नाकामी में अब और जिया जाता नहीं।

वक्त बदला जाता हैं तदबीर की आजमाइश से 
वक़्त, बेवक़्त यूँ ही बदल जाता नहीं।

ख्वाब खुद ही देखने पड़ते हैं ज़िन्दगी के लिए
कोई हमको ख्वाब दिखाने आता नहीं।

मुझे दौलत से इश्क़ हैं, मुझे शोहरत कमानी हैं
ज़माल-ओ-शराब से मेरा कोई नाता नहीं।

                                                    -अभिषेक चौधरी

©Abhishek Choudhary
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