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रोज सूरज की तरह उगना व फिर ढलना पड़ेगा शीत मे

रोज  सूरज की  तरह  उगना  व  फिर ढलना पड़ेगा
शीत  में  गलना  पड़ेगा  ग्रीष्म  में  जलना  पड़ेगा 
मंज़िलें मिलना न मिलना वक़्त ख़ुद ही तय करेगा 
किंतु  अपने  हौसलों  के  बल  हमें  चलना  पड़ेगा।।

 विवेक कुशवाह

©साहित्य संजीवनी
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