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"कि हम किताबों के साथ मिलते थे ।। जबकि हमको गुलाब

"कि हम किताबों के साथ मिलते थे ।।
जबकि हमको गुलाब लाने थे।
 कि यूँ किताबों को रख दिया जाए ।
एक नया सा सबक दिया जाए ।
कि तुम पर मरना तो चाहते हैं सब ।
मुझको जीने का हक दिया जाए ।
यह जमानत भी मांगने थी हमें ।
इतनी कीमत भी मांगने थी हमें।
 कि जिस घड़ी प्यार तुमसे मांगा था।
 थोड़ी इज्जत भी मांगी थी हमें ।
कि स्वप्न साकार ही ना कर पाए।
 हार स्वीकार ही न कर पाए ।
तुमको देखा था पहली बार जहां।
 वो गली पार ही ना कर पाए।
 कि हर नए दिन नई फसल बोते।
 आंसुओं से ना ये हँसी खोते ।
अब तुम्हारे ही रह गए गायक ।
तुम ना होते तो हम कवि होते।।"

©Ankit Surothiya 
  यादों का झरोखा।

यादों का झरोखा। #शायरी

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