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आँखों से छलकते हैं ,कभी होंठो पर खनकते हैं, मचलते

 आँखों से छलकते हैं ,कभी होंठो पर खनकते हैं,
मचलते हैं दिल  में , कभी   यादों   में महकते हैं,

कितना सुकूँ  दे  जाते हैं ,जब ख़्वाबों में आते हैं,
तुम्हारे साथ के वो पल, मन मे पँछी से चहचहाते हैं,

पुरसुकूँ था वो हर लम्हा,जो तुम्हारे साथ गुज़रा था,
दर्द  का  कोई मंज़र ,तब कहां मेरी ओर गुज़रा था,

पापा तुम  तो   उस विशाल  वट   वृक्ष की तरह थे,
जिसमें   मेरे  अनगिनत   ख़्वाब , कुलाँचे भरते थे,

अब दर्द की सरहद पर बैठी ,शून्य को ताक रही हूँ,
कहीं मिल जाओ तुम ,अपने अंतर्मन में झाँक रही हूँ,

वो  लाड़ ,दुलार ,वो  मनुहार ,  फिर कभी न मिला,
वो स्नेह स्पर्श , जिस से  मिट  जाता था हर  गिला,

आ जाओ पापा ये आँखें बस राह तुम्हारी तकती हैं,
वो स्नेह से भरी तुम्हारी छवि,किसी में नही दिखती है।।

-पूनम आत्रेय

©poonam atrey
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