क़दम क़दम पर इम्तिहान होते रहे हैं। अपनी ज़िन्दगी लम्हें लम्हें खोते रहे हैं। धर्म अर्थ काम मोक्ष की राह चलना था, हम बस अर्थ का अनर्थ ही करते रहे हैं। हमारी ख़्वाहिशें उम्र के साथ बढ़ती रही। जिसको जितना चाहा चाहत बढ़ती रही। इच्छाओं के लालच ने ऐसा जकड़ा हमें ! गिरते गए मूल्य बस महंगाई बढ़ती रही। जीवन सबको मिला जीने की कला नहीं! जीने की कला जिसने पाई वह थमा नहीं। कुछ यादगार सफ़र मुस्कुराता अतीत से, बस उनकी कीर्ति का रथ कभी जमा नहीं। 🎀 Challenge-470 #collabwithकोराकाग़ज़ 🎀 इस पोस्ट को हाईलाइट करना न भूलें :) 🎀 इस विषय को अपने शब्दों से सजाइए। 🎀 रचना लिखने के बाद इस पोस्ट पर Done काॅमेंट करें।