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आप अरबपति हो गए, हम तो रहे फकीर। लेकिन पैसों के

आप अरबपति  हो गए, हम तो रहे फकीर।
लेकिन  पैसों  के  लिए,  बेचा  नहीं  शरीर।।

तुमने  धन को  मानकर, अपना  माई-बाप।
अपने  बच्चों  के लिए, किए  हज़ारों  पाप।।

          ।।पंडित रवीश पाण्डेय।।

©साहित्य संजीवनी
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