sunset nature माया की सब करे चाकरी बन करके अनुरागी, राग-द्वेष से भरे हुए कहते ख़ुद को बैरागी, घर परिवार छोड़कर राजाओं सा जीवन जीते, ठाठ देख दुनिया भौचक्की कैसे हैं ये त्यागी, सुत दारा घरबार में भूले असली पता ठिकाना, धन-दौलत रह जाए यहीं पर रामनाम बड़भागी, आत्मचेतना बिना न बुझती अहंकार की ज्वाला, विघटनकारी तत्व बनाते कोमल मन को बागी, ज्ञान चक्षु से रत्नाकर ॠषि बाल्मीकि बन जाए, कर्मों का लेखा रावण कहलाए अब तक दागी, जीवन में उल्लास प्रेममय हुआ हृदय भी 'गुंजन', प्राण-प्रतिष्ठा से विग्रह में नई चेतना जागी, ---शशि भूषण मिश्र 'गुंजन' चेन्नई तमिलनाडु ©Shashi Bhushan Mishra #कहते ख़ुद को बैरागी#