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धुंधल छावं चढ़ी तेरे मुख पर, नियत तेरी साफ नही दिख

धुंधल छावं चढ़ी तेरे मुख पर,
नियत तेरी साफ नही दिख रही,
कल उस मूर्त को खुद पर गुरुर था,
देख अब कैसे मिट्टी में मिल रही। धुंधल छावं चढ़ी तेरे #मुख पर,
#नियत तेरी #साफ नही दिख रही,
#कल उस #मूर्त को खुद पर #गुरुर था,
देख अब कैसे #मिट्टी में मिल रही।
धुंधल छावं चढ़ी तेरे मुख पर,
नियत तेरी साफ नही दिख रही,
कल उस मूर्त को खुद पर गुरुर था,
देख अब कैसे मिट्टी में मिल रही। धुंधल छावं चढ़ी तेरे #मुख पर,
#नियत तेरी #साफ नही दिख रही,
#कल उस #मूर्त को खुद पर #गुरुर था,
देख अब कैसे #मिट्टी में मिल रही।
poetmaster3860

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