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*_दर्पण की कोई अपनी सूरत नहीं होती बिल्कुल कोरा हो

*_दर्पण की कोई अपनी सूरत नहीं होती बिल्कुल कोरा होता है, लेकिन जो भी सामने आता है। उसकी सूरत अपने भीतर समाहित कर लेता है।। हमारा मन भी कोरे दर्पण की तरह  होता है। लेकिन सामने वाले को हम अपनी भावना के अनुरूप देखते हैं। अच्छी भावना हो, तो सब अच्छे लगते हैंं।। और यदि हमारी भावना दूषित हो,तो सामने वाला कितना ही अच्छा हो, हमे उसमें दोष ही दिखाई देगा, हम सदा दूसरों का ही चिंतन करते है। स्वयं को अपने मन के दर्पण में देखें, यही स्वाध्याय है।।

©Andy Mann
  #आत्मविश्लेषण