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"रौद्र रस" सजीव के मन का एक भाव होता है रौद्र रस,

"रौद्र रस"

सजीव के मन का एक भाव होता है रौद्र रस,
जब ना हुई दिल की तब ये प्रकट होता है। 

खो देता है आपा मनुष्य अपने आप पर,
और क्रोध के आवेश मे कुछ अनिच्छिनिय कर डालता है। 

लेकिन आज के कलयुग में मनुष्य का भी कोई दोष नहीं, 
ये आदमी भी ऐसा ही हो गया है कि सामने से दिलाता है क्रोध भाव। 

चाहे बात हो कोई घर की या फिर हमारे वास्तविक जीवन की, 
अपनी इच्छा संतुष्टि के लिए लोग आ जाते हैं आवेग में।

झगड़ रहे हैं लोग आज जाति और धर्म के नाम पर, 
और नष्ट कर रहे हैं हमारे राष्ट्र की अमूल्य संपत्ति। 

-Nitesh Prajapati 
 रचना क्रमांक :-2

#kkकाव्यमिलन
#कोराकाग़ज़काव्यमिलन
#काव्यमिलन_2
#विशेषप्रतियोगिता
#collabwithकोराकाग़ज़
#कोराकाग़ज़
"रौद्र रस"

सजीव के मन का एक भाव होता है रौद्र रस,
जब ना हुई दिल की तब ये प्रकट होता है। 

खो देता है आपा मनुष्य अपने आप पर,
और क्रोध के आवेश मे कुछ अनिच्छिनिय कर डालता है। 

लेकिन आज के कलयुग में मनुष्य का भी कोई दोष नहीं, 
ये आदमी भी ऐसा ही हो गया है कि सामने से दिलाता है क्रोध भाव। 

चाहे बात हो कोई घर की या फिर हमारे वास्तविक जीवन की, 
अपनी इच्छा संतुष्टि के लिए लोग आ जाते हैं आवेग में।

झगड़ रहे हैं लोग आज जाति और धर्म के नाम पर, 
और नष्ट कर रहे हैं हमारे राष्ट्र की अमूल्य संपत्ति। 

-Nitesh Prajapati 
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