भोर की उजली किरण लाई उजाला हर तरफ। ओस की बूँदें बिछीं बनकर दुशाला हर तरफ। लालिमा लेकर गगन में रवि हुआ है अवतरित- आँख मलती उठ रही जीवन विशाला हर तरफ़। प्रकृति ने है सजा दी रंगशाला हर तरफ। बिछ गई सुंदर सुवासित पुष्पमाला हर तरफ। हैं चहकती करती कलरव सप्तसुर में पँछियाँ- गूँज उठ्ठा घंटियों से है शिवाला हर तरफ। रिपुदमन झा 'पिनाकी' धनबाद (झारखण्ड) स्वरचित एवं मौलिक ©Ripudaman Jha Pinaki #भोर