इज़हार-ए-इश्क़ (ग़ज़ल) ********************** इश्क़ है तुझसे ऐ ज़िन्दगी इज़हार ए इश्क़ बार-बार करती हूँ, तिरी मिज़ाज़ की हर वफ़ा का मैं ऐतबार बार-बार करती हूँ, तू बदलती मौसम सी तिरे हर रंग में रंगकर ख़ुद को तुझमें समा जाने का गुनाह बार-बार करती हूँ, तिरी लाख सितम को सहकर तज़ुर्बेदार होने का हुनरबाज़ बनने की आरज़ू बार-बार करती हूँ, हाँ इश्क़ है मुझे तुझसे कायनात को करके गवाह तिरी मासूमियत को बदनाम बार-बार न करने का ऐलान करती हूँ, बड़ा गज़ब का इश्क़ है तुझसे ऐ ज़िन्दगी मिलाती है तू मुझे ख़ुद से उस आईने का मैं शुक्रिया बार बार करती हूँ, चौथी रचना_ग़ज़ल👉 इज़हार-ए-इश्क़ ************** #ग़ज़ल #इज़हार_ए_इश्क़ #collabwithकोराकाग़ज़ #कोराकाग़ज़ #KKPC26