अपमानित होना फिर भी बच जाता है' कर्तव्य समझकर, जीवन भर, चाहे घुट घुट कर या हंस-हंसकर धूप छांव, सर्दी गर्मी, हर हाल में माली अपना बाग सजाता है। भोजन के लिए, पनघट भी जाता है दाना पानी, हर हाल में लेकर आता है। चलते चलते थक जाता है, सूरज की तरह ,अस्ताचल में एक दिन ढल जाता है। इतना सब कुछ, करने के बदले ,उसका अपमानित होना ,फिर भी बच जाता है। ©Anuj Ray #अपमानित होना फिर भी बच जाता है