सभी बहनों को उनके ससुराल वालों ने नौकरी करा दी, है ना?और हमारी मां को भी हमारे पिता ने?😅
पिता जानते है कमाना क्या होता है और अपने पैसे का आत्म विश्वास क्या होता है फिर भी हर घर की हर बच्ची को किसी और पर निर्भर रहने के लिए छोड़ देते है और जब कभी उसका साथी उसे छोड़ देता है तो बच्ची को क्या क्या सहना पड़ता है तब जमाना धर्म शर्म और पता नही क्या क्या दुहाई देकर उसका जीवन नर्क बना देते हो, अगर असल माता पिता परमात्मा हो तो बेटी जब तक आत्म विश्वासी ना हो जाए तब तक ब्याह ना करो,बच्चे पैदा करते हो तो केवल शादी करना ही अपना उद्देश मत समझो। बच्चो को पहले अपना भविष्य बनाने दो अपना जीवन जीने दो फिर कोई जिम्मेदारी डालो, शादी का मकसद केवल बच्चे पैदा करना ही तो है नही,कई अनदेखी अनजानी मुसीबतें आयेंगी उनसे कुशलता से जीवन पार लगाना है।
जब तक हमारे घर की नारी को नही लगे की उसका जीवन सुधर गया है,कुछ आसान लगता है जीवन उसे तब तक कोई सुधार,कोई मॉर्डन, कोई जमाना नहीं बदला।
केवल electronic device चलाने को आधुनिक युग या मॉर्डन जमाना नही कहा जाएगा। जब तक घर की नारी का जीवन आसान जीने लायक नही लगेगा तब तक कुछ सही नही होगा रिश्तों में।
हम अपने घरों को सुधारे तो कोई महानुभाव कोई सरकार कोई कानून कोई समाज सेवक पैदा नहीं होंगे, हमारे घरों में हमारी बहन बेटियों के हाल खराब है उन्हें बेहतर करने का जिम्मा हम औरों को दे?हम खुद घर में भेदभाव जैसी चीजे करते है तब समाज और जमाना हमारी बेटियो के साथ करता है।
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