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निशा जिससे सहम जाते हैं हम अक़्सर, आज अग्रसर हो कर

निशा
जिससे सहम जाते हैं हम अक़्सर,
आज अग्रसर हो कर उसने हमें,
रोशनी की चमक दिखाई है।
सूरज
जो ढलता था कभी,
आज उगता नज़र आने लगा है।
किरणें शायद फिर से मिलने आईं हैं।
पतझड़
जो ज़िन्दगी का आईना था कभी,
आज बसन्त के आगमन का संदेश देता है,
शायद दुख को सुख से मिलाने लाया है।
सुबह
जो नई ऊर्जा का संकेत देती है,
आँखों के सामने अंधेरों को रोशन कर देती है,
जैसे हर पल आज हमीं से मिलने आया है।
जीवन
जो धीरे धीरे मृत्यु की ओर अग्रसर है,
अगर उद्देश्य हो कोई,रास्ताें को रोशन कर देता है,
जैसे सब कुछ भूल कर जीना सिखाने आया है। Diary 27.11.2009

#निशा 
#सूरज 
#पतझड़ 
#सुबह 
#जीवन 
#yqdidi
निशा
जिससे सहम जाते हैं हम अक़्सर,
आज अग्रसर हो कर उसने हमें,
रोशनी की चमक दिखाई है।
सूरज
जो ढलता था कभी,
आज उगता नज़र आने लगा है।
किरणें शायद फिर से मिलने आईं हैं।
पतझड़
जो ज़िन्दगी का आईना था कभी,
आज बसन्त के आगमन का संदेश देता है,
शायद दुख को सुख से मिलाने लाया है।
सुबह
जो नई ऊर्जा का संकेत देती है,
आँखों के सामने अंधेरों को रोशन कर देती है,
जैसे हर पल आज हमीं से मिलने आया है।
जीवन
जो धीरे धीरे मृत्यु की ओर अग्रसर है,
अगर उद्देश्य हो कोई,रास्ताें को रोशन कर देता है,
जैसे सब कुछ भूल कर जीना सिखाने आया है। Diary 27.11.2009

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#सूरज 
#पतझड़ 
#सुबह 
#जीवन 
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