न जाने कब, कहां हम कितने घटते रहे, कच्चे मैदां ,कच्चे रस्ते सब पटते रहे गर्दिशों के बादल कच्ची छत पर फटते रहे, उम्र ढलती गई, रोढ़े भी हटते रहे बेगरज़ थे फिर भी आंखों में खटकते रहे, इक सुकून की तलाश में ताउम्र भटकते रहे पक्की नींद सोया कोई, कहीं कच्चे मकां टपकते रहे चौखट भी रही इंतज़ार में, दर भी मेरे चटकते रहे, भूल गया वह भी, नाम जिसका हम उम्र भर रटते रहे, सुना कर दास्तां पन्नों को, ग़म अपने बटते रहे, हुआ हिसाब नेकियों का ,ग़रीब थे वह जो ज़िंदगी भर दौलत समेटते रहे , साहिल पर बने घरौंदे लहरों से मिटते रहे गुज़रते लम्हों की चादर में हम लिपटते रहे, कि यूं ही लिखते-पढ़ते "राना" दिन अपने कटते रहे "चौखट भी रही इंतज़ार में दर भी मेरे चटकते रहे, कि यूं ही लिखते-पढ़ते "राना" दिन अपने कटते रहे"...!! #चौखट #इंतज़ार #दर #बेज़ार #हयातकेरंग #स्याहीकेसंग #मेरीक़लमसे #जज़्बात