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अब थक सा गया हूं, तुम सीने से लगाओगे क्या, टूट

अब थक  सा गया हूं, 
तुम सीने से लगाओगे क्या, 
 टूट के बिखर रहा हूँ पत्तों-सा, 
उन्हे एक दायरे में समेंटोंगे  क्या , 
खो जाता हूं अक्सर ख़ुद से , 
तुम नई राह दिखाओगे क्या , 
डर लगता है इन महफिलों, 
आ के मेरा हाथ थामोगे क्या , 
बढ़ती जा रही हैं ये उलझनें , 
तुम इनको सुलझाओ गे क्या , 
हर तरफ़ दिख रहा हैं  बंज़र , 
तुम इनमे कुछ नये कोपलें खिलाओगे क्या,  
ओझल हो गयी  हैं ये  मंज़िल , 
तुम गुरु-सा राह दिखाने आओगे क्या ......??

©Shivay
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shivanay1239

Shivay

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