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।। ओ३म् ।। अग्नीर्मूर्धा चक्षुषी चन्द्रसूर्यौ दिश

।। ओ३म् ।।

अग्नीर्मूर्धा चक्षुषी चन्द्रसूर्यौ दिशः श्रोत्रे वाग्‌ विवृताश्च वेदाः।
वायुः प्राणो हृदयं विश्वमस्य पद्‌भ्यां पृथिवी ह्येष सर्वभूतान्तरात्मा ॥

अग्नि 'उसका' मस्तक (मूर्धा) है, चन्द्रमा तथा सूर्य उसके नेत्र हैं, दिशाएँ उसकी श्रवणेन्द्रियाँ (श्रोत्र) हैं तथा प्रकट हुए वेद उसकी वाणी हैं, वायु उसका प्राण है, विश्व उसका हृदय है, उसके चरणों में पृथ्वी आसीन है, 'वह' समस्त उद्भूत सत्ताओं का 'अन्तरात्मा' है।

Fire is the head of Him and his eyes are the Sun and Moon, the quarters his organs of hearing and the revealed Vedas are his voice, air is his breath, the universe is his heart, Earth lies at his feet. He is the inner Self in all beings.

( मुंडकोपनिषद १.३.४ ) #मुण्डकोपनिषद #उपनिषद #विश्वरूप #विष्णु #अमूर्त #अदृश्य #दिव्य
।। ओ३म् ।।

अग्नीर्मूर्धा चक्षुषी चन्द्रसूर्यौ दिशः श्रोत्रे वाग्‌ विवृताश्च वेदाः।
वायुः प्राणो हृदयं विश्वमस्य पद्‌भ्यां पृथिवी ह्येष सर्वभूतान्तरात्मा ॥

अग्नि 'उसका' मस्तक (मूर्धा) है, चन्द्रमा तथा सूर्य उसके नेत्र हैं, दिशाएँ उसकी श्रवणेन्द्रियाँ (श्रोत्र) हैं तथा प्रकट हुए वेद उसकी वाणी हैं, वायु उसका प्राण है, विश्व उसका हृदय है, उसके चरणों में पृथ्वी आसीन है, 'वह' समस्त उद्भूत सत्ताओं का 'अन्तरात्मा' है।

Fire is the head of Him and his eyes are the Sun and Moon, the quarters his organs of hearing and the revealed Vedas are his voice, air is his breath, the universe is his heart, Earth lies at his feet. He is the inner Self in all beings.

( मुंडकोपनिषद १.३.४ ) #मुण्डकोपनिषद #उपनिषद #विश्वरूप #विष्णु #अमूर्त #अदृश्य #दिव्य