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Death_Lover

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विष्णुप्रिया

वह जो अपने समस्त कार्य
ईश्वर को समर्पित करके करता है
उसे पाप कभी स्पर्श नही करते,
जैसे कमल के पत्तों को जल स्पर्श नही करता । #yqdidi #hindiquotes #spiritualityquotes #अध्यात्मिक # #हिंदीqoutes #विष्णुप्रिया #उपनिषद

वेदों की दिशा

.।। ओ३म् ।।

प्रणवो धनुः शरो ह्यात्मा ब्रह्म तल्लक्ष्यमुच्यते।
अप्रमत्तेन वेद्धव्यं शरवत्‌ तन्मयो भवेत्‌ ॥

ॐ (प्रणव) है धनुष तथा आत्मा है बाण, और 'वह', अर्थात् 'ब्रह्म' को लक्ष्य के रूप में कहा गया है। 'उसका' प्रमाद रहित होकर वेधन करना चाहिये; जिस प्रकार शर अर्थात् बाण अपने लक्ष्य में विलुप्त हो जाता है उसी प्रकार मनुष्य को 'उस' में (ब्रह्म में) तन्मय हो जाना चाहिये।

OM is the bow and the soul is the arrow, and That, even the Brahman, is spoken of as the target. That must be pierced with an unfaltering aim; one must be absorbed into That as an arrow is lost in its target.

( मुण्डकोपनिषद् २.२.४ ) #मुण्डकोपनिषद् #mundakopanishad #उपनिषद #उपनिषद #ब्रह्मा #वह #him

वेदों की दिशा

।। ओ३म् ।।

यदर्चिमद्यदणुभ्योऽणु च यस्मिंल्लोका निहिता लोकिनश्च।
तदेतदक्षरं ब्रह्म स प्राणस्तदु वाङ् मनः तदेतत् सत्यं तदमृतं तद् वेद्धव्यं सोम्य विद्धि ॥

यह जो 'ज्योतिर्मान्' है, जो अणुओं से भी सूक्ष्मतर है, जिसके अन्दर समस्त लोक-लोकान्तर एवं उनके लोकवासी सन्निहित हैं, 'वही' है 'यह'-यह अक्षर 'ब्रह्म' प्राणतत्त्व 'वही' है, 'वही' वाणी तथा मन है। 'वही' है 'यह' 'परम सत्य' तथा 'सत्तत्त्व', 'वही' है अमृत तत्त्व तुम्हारे द्वारा 'वही' है वेधनीय, है सौम्य! 'उसी' का वेधन करो (उसमें प्रवेश करो)।

That which is the Luminous, that which is smaller than the atoms, that in which are set the worlds and their peoples, That is This,-it is Brahman immutable: life is That, it is speech and mind. That is This, the True and Real, it is That which is immortal: it is into That that thou must pierce, O fair son, into That penetrate.

( मुण्डकोपनिषद् २.२.२ ) #मुंडकोपनिषद  #upnishad #उपनिषद #ज्ञान_गंगा #परमेश्वर #परमात्मा #आत्मा #ब्रह्मा #अद्वितीय #सर्वव्याप्त

वेदों की दिशा

।। ओ३म् ।।

आविः सन्निहितं गुहाचरं नाम महत् पदमत्रैतत्‌ समर्पितम्‌।
एजत् प्राणन्निमिषच्च यदेतज्जानथ सदस-द्वरेण्यं परं विज्ञानाद्यद्वरिष्ठं प्रजानाम्‌ ॥

स्वयं आविर्भूत परम तत्त्व यहाँ सन्निहित है, यह हृद्गुहा में विचरने वाला महान् पद है, इसमें ही यह सब समर्पित है जो गतिमान् है, प्राणवान् है तथा जो दृष्टिमान् है। यह जो यही महान् पद है, उसको ही 'सत्' तथा 'असत्' जानो, जो परम वरेण्य है, महत्तम एवं 'सर्वोच्च' (वरिष्ठ) है, तथा जो प्राणियों (प्रजाओं) के ज्ञान से परे है।

Manifested, it is here set close within, moving in the secret heart, this is the mighty foundation and into it is consigned all that moves and breathes and sees. This that is that great foundation here, know, as the Is and Is not, the supremely desirable, greatest and the Most High, beyond the knowledge of creatures.

( मुंडकोपानिषद २.२.१ ) #मुंडकोपनिषद #उपनिषद #ज्ञान_गंगा  #ज्ञान #वेदत्व #वेदांत #mundakopanishad #upnishads

वेदों की दिशा

।। ओ३म् ।।

तदेतत्‌ सत्यं मन्त्रेषु कर्माणि कवयो यान्यपश्यंस्तानि त्रेतायां बहुधा संततानि।
तान्याचरथ नियतं सत्यकामा एष वः पन्थाः सुकृतस्य लोके ॥

यह है 'वह' पदार्थों का 'सत्यतत्त्व'ː कवि-द्रष्टाओं ने मन्त्रों१ में जिन कर्म को देखा, वे त्रेतायुग२ में बहुधा विस्तारित हुए। उन कर्मों का एकनिष्ठ होकर 'सत्य' के लिए कामना करते हुए तुम नियमित आचरण करो; पुण्य कर्म-लोक (सुकृत-लोक) के लिए यही तुम्हारा पन्थ है।

This is That, the Truth of things: works which the sages beheld in the Mantras were in the Treta manifoldly extended. Works do ye perform religiously with one passion for the Truth; this is your road to the heaven of good deeds.

( मुंडकोपनिषद १.२.१ ) #उपनिषद #मुंडकोपनिषद #upnishad #karma #कर्म #ज्ञान #वेद

Death_Lover

Destiny is All but All isn't Destiny.

नए युग की तलाश में, ए इंसा तुमने सब ख़ाक कर दिया
मानता हूँ नियति है एक रास्ता भी, मगर ग्रन्थ और उपनिषद को
जला कर तुमने अपने अस्तित्व को ही राख कर दिया॥

©Himanshu Tomar #युग #ग्रन्थ #उपनिषद #अस्त्तित्व #नियति #Destiny 

#Olympic2021

वेदों की दिशा

।। ओ३म्  ।।

हिरण्मये परे कोशे विरजं ब्रह्म निष्कलम्‌।
तच्छुभ्रं ज्योतिषां ज्योतिस्तद्‌ यदात्मविदो विदुः ॥

उस परम हिरण्मय कोश में निष्कलंक, निरवयव 'ब्रह्म' निवास करता है 'वह' 'शुभ्र-भास्वर' है, वह 'ज्योतियों' की 'ज्योति' है, 'वही' है जिसे आत्म-ज्ञानी जानते हैं।

In a supreme golden sheath the Brahman lies, stainless, without parts. A Splendour is That, It is the Light of Lights, It is That which the self-knowers know.

( मुण्डकोपनिषद् २.२.१० ) #मुण्डकोपनिषद #उपनिषद #ब्रह्मा #स्वयं #self #brahman

वेदों की दिशा

।। ओ३म् ।।

भिद्यते हृदयग्रन्थिश्छिद्यन्ते सर्वसंशयाः।
क्शीयन्ते चास्य कर्माणि तस्मिन्‌ दृष्टे परावरे ॥

हृदय की सारी ग्रथियाँ खुल जाती हैं, समस्त संशय छिन्न-भिन्न हो जाते हैं, तथा मनुष्य के कर्मों का क्षय हो जाता है, जब उस 'परतत्त्व' का दर्शन हो जाता है, जो एक साथ ही अपरा सत्ता एवं 'परम सत्ता' है।

The knot of the heartstrings is rent, cut away are all doubts, and a man's works are spent and perish, when is seen That which is at once the being below and the Supreme.

( मुण्डकोपनिषद २.२.९ ) #मुण्डकोपनिषद #उपनिषद #हृदय #मुक्ति #परतत्व #परमात्मा #ईश्वर

वेदों की दिशा

।। ओ३म् ।।

यः सर्वज्ञः सर्वविद्‌ यस्यैष महिमा भुवि।
दिव्ये ब्रह्मपुरे ह्येष व्योम्न्यात्मा प्रतिष्ठितः ॥

जो 'सर्वज्ञ' है 'सर्वविद्' है जिसकी पृथ्वी पर यह सब महिमा है यह 'आत्मा' ही है जो इस दिव्य ब्रह्मपुरी में, इस व्योम में प्रतिष्ठित है।

The Omniscient, the All-wise, whose is this might and majesty upon the earth, is this self enthroned in the divine city of the Brahman, in his ethereal heaven.

( मुण्डकोपनिषद् २.२.७ ) #मुण्डकोपनिषद #उपनिषद #गुरु
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