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जिस्म की नुमाइश के इस दौर में, मैं इश्क़ बेचने निकल

जिस्म की नुमाइश के इस दौर में, मैं इश्क़ बेचने निकल था
कितना नासमझ था मैं उस बेवफा की वफ़ा देखने निकल था
इश्क़ होता उसे हम जैसा अगर तो बिछड़ने का दर्द पता चलता
हमारी जगाह होते वो तो ज़िंदा रहकर मरने का दर्द पता चलता

©आशुतोष त्यागी
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