Nojoto: Largest Storytelling Platform

।। ॐ ।। सम्भू॑तिं च विना॒शं च॒ यस्तद्वेदो॒भय॑ꣳ स॒ह

।। ॐ ।।
सम्भू॑तिं च विना॒शं च॒ यस्तद्वेदो॒भय॑ꣳ स॒ह।
वि॒ना॒शेन॑ मृ॒त्युं ती॒र्त्वा सम्भू॑त्या॒मृत॑मश्नुते ॥११ ॥

पद पाठ

सम्भू॑ति॒मिति॒ सम्ऽभू॑तिम्। च॒। वि॒ना॒शमिति॑ विऽना॒शम्। च॒। यः। तत्। वेद॑। उ॒भय॑म्। स॒ह ॥ वि॒ना॒शेनेति॑ विना॒शेन॑। मृ॒त्युम्। ती॒र्त्वा। सम्भू॒त्येति॒ सम्ऽभू॑त्या। अ॒मृत॑म्। अ॒श्नु॒ते॒ ॥

हे मनुष्यो ! (यः) जो विद्वान् (सम्भूतिम्) जिसमें सब पदार्थ उत्पन्न होते उस कार्य्यरूप सृष्टि (च) और उसके गुण, कर्म, स्वभावों को तथा (विनाशम्) जिसमें पदार्थ नष्ट होते उस कारणरूप जगत् (च) और उसके गुण, कर्म, स्वभावों को (सह) एक साथ (उभयम्) दोनों (तत्) उन कार्य्य और कारण स्वरूपों को (वेद) जानता है, वह विद्वान् (विनाशेन) नित्यस्वरूप जाने हुए कारण के साथ (मृत्युम्) शरीर छूटने के दुःख से (तीर्त्वा) पार होकर (सम्भूत्या) शरीर, इन्द्रियाँ और अन्तःकरणरूप उत्पन्न हुई कार्यरूप धर्म में प्रवृत्त करानेवाली सृष्टि के साथ (अमृतम्) मोक्षसुख को (अश्नुते) प्राप्त होता है ॥

Hey man  (Yah) The scholar (sambhuti) in which all matter arises, the working form (f) and its qualities, deeds, nature and (nishtram) in which the material is destroyed due to the world (f) and its qualities, deeds, nature (  Cum) together (ubhayam) knows both the (tatha) those work and causal forms (veda), he (scholar) is permeated (tirthva) by the grief of leaving the body (mriyātam) with the known cause.  The body, the senses and the inner form of action, Moksasukh (Ashnute) is attained with the (Amritam) creation that leads in religion.

ईशोपनिषद मंत्र ११ #ईशोपनिषद #उपनिषद #मोक्ष #यजुर्वेद
।। ॐ ।।
सम्भू॑तिं च विना॒शं च॒ यस्तद्वेदो॒भय॑ꣳ स॒ह।
वि॒ना॒शेन॑ मृ॒त्युं ती॒र्त्वा सम्भू॑त्या॒मृत॑मश्नुते ॥११ ॥

पद पाठ

सम्भू॑ति॒मिति॒ सम्ऽभू॑तिम्। च॒। वि॒ना॒शमिति॑ विऽना॒शम्। च॒। यः। तत्। वेद॑। उ॒भय॑म्। स॒ह ॥ वि॒ना॒शेनेति॑ विना॒शेन॑। मृ॒त्युम्। ती॒र्त्वा। सम्भू॒त्येति॒ सम्ऽभू॑त्या। अ॒मृत॑म्। अ॒श्नु॒ते॒ ॥

हे मनुष्यो ! (यः) जो विद्वान् (सम्भूतिम्) जिसमें सब पदार्थ उत्पन्न होते उस कार्य्यरूप सृष्टि (च) और उसके गुण, कर्म, स्वभावों को तथा (विनाशम्) जिसमें पदार्थ नष्ट होते उस कारणरूप जगत् (च) और उसके गुण, कर्म, स्वभावों को (सह) एक साथ (उभयम्) दोनों (तत्) उन कार्य्य और कारण स्वरूपों को (वेद) जानता है, वह विद्वान् (विनाशेन) नित्यस्वरूप जाने हुए कारण के साथ (मृत्युम्) शरीर छूटने के दुःख से (तीर्त्वा) पार होकर (सम्भूत्या) शरीर, इन्द्रियाँ और अन्तःकरणरूप उत्पन्न हुई कार्यरूप धर्म में प्रवृत्त करानेवाली सृष्टि के साथ (अमृतम्) मोक्षसुख को (अश्नुते) प्राप्त होता है ॥

Hey man  (Yah) The scholar (sambhuti) in which all matter arises, the working form (f) and its qualities, deeds, nature and (nishtram) in which the material is destroyed due to the world (f) and its qualities, deeds, nature (  Cum) together (ubhayam) knows both the (tatha) those work and causal forms (veda), he (scholar) is permeated (tirthva) by the grief of leaving the body (mriyātam) with the known cause.  The body, the senses and the inner form of action, Moksasukh (Ashnute) is attained with the (Amritam) creation that leads in religion.

ईशोपनिषद मंत्र ११ #ईशोपनिषद #उपनिषद #मोक्ष #यजुर्वेद