Nojoto: Largest Storytelling Platform

Best ईशोपनिषद Shayari, Status, Quotes, Stories

Find the Best ईशोपनिषद Shayari, Status, Quotes from top creators only on Nojoto App. Also find trending photos & videos about

  • 1 Followers
  • 12 Stories
    PopularLatestVideo

वेदों की दिशा

।। ॐ ।।
                                      वि॒द्यां चावि॑द्यां च॒ यस्तद्वेदो॒भय॑ꣳ स॒ह।
                                    अवि॑द्यया मृ॒त्युं ती॒र्त्वा वि॒द्यया॒मृत॑मश्नुते ॥१४ ॥
 पद पाठ

वि॒द्याम्। च॒। अवि॑द्याम्। च॒। यः। तत्। वेद॑। उ॒भय॑म्। स॒ह ॥ अवि॑द्यया। मृ॒त्युम्। ती॒र्त्वा। वि॒द्यया॑। अ॒मृत॑म्। अ॒श्नु॒ते॒ ॥




(यः) जो विद्वान् (विद्याम्) पूर्वोक्त विद्या (च) और उसके सम्बन्धी साधन-उपसाधनों (अविद्याम्) पूर्व कही अविद्या (च) और इसके उपयोगी साधनसमूह को और (तत्) उस ध्यानगम्य मर्म (उभयम्) इन दोनों को (सह) साथ ही (वेद) जानता है, वह (अविद्यया) शरीरादि जड़ पदार्थ समूह से किये पुरुषार्थ से (मृत्युम्) मरणदुःख के भय को (तीर्त्वा) उल्लङ्घ कर (विद्यया) आत्मा और शुद्ध अन्तःकरण के संयोग में जो धर्म उससे उत्पन्न हुए यथार्थ दर्शनरूप विद्या से (अमृतम्) नाशरहित अपने स्वरूप वा परमात्मा को (अश्नुते) प्राप्त होता है ॥


(Ie) the scholar (vidyam) aforesaid lore (f) and its related resources (avidyam) formerly said avidya (f) and its useful means and (t) that meditative heart (ubhyam), both of them (co) together  He (the Vedas) knows that (avidya) from the Purushartha of the Shariadi root matter group (death), the fear of deathliness (tirtha), (the student) in the combination of the soul and the pure conscience, the religion arising out of the real philosophy  (Amritam) is perishable in its form and God attains (Ashunate).

ईशोपनिषद मंत्र १४ #ईशोपनिषद #वेद #उपनिषद #यजुर्वेद #वेदांत #विद्या #अविद्या

वेदों की दिशा

।। ॐ ।।
अ॒न्यदे॒वाहुर्वि॒द्याया॑ऽअ॒न्यदा॑हु॒रवि॑द्यायाः।
 इति॑ शुश्रुम॒ धीरा॑णां॒ ये न॒स्तद्वि॑चचक्षि॒रे ॥१३ ॥

पद पाठ

अ॒न्यत्। ए॒व। आ॒हुः। वि॒द्यायाः॑। अ॒न्यत्। आ॒हुः॒। अवि॑द्यायाः ॥ इति॑। शु॒श्रु॒म॒। धीरा॑णाम्। ये। नः॒। तत्। वि॒च॒च॒क्षि॒रे इति॑ विऽचचक्षि॒रे ॥

हे मनुष्यो ! (ये) जो विद्वान् लोग (नः) हमारे लिये (विचचक्षिरे) व्याख्यापूर्वक कहते थे (विद्यायाः) पूर्वोक्त विद्या का (अन्यत्) अन्य ही कार्य वा फल (आहुः) कहते थे (अविद्यायाः) पूर्व मन्त्र से प्रतिपादन की अविद्या का (अन्यत्, एव) अन्य फल (आहुः) कहते हैं (इति) इस प्रकार उन (धीराणाम्) आत्मज्ञानी विद्वानों से (तत्) उस वचन को हम लोग (शुश्रुम) सुनते थे, ऐसा जानो ॥

Hey human  (These) those scholars who (nah) used to say (vichchakshire) for us (vidyakya), (other) of the aforesaid vidya (other), they used to say (avidya:) of the ignorance of rendering from the former mantra (other, and  ) Other fruits (ahuah) say (iti) that is how we (Shushrum) used to hear (that) from those (slow-witted) wise scholars.

ईशोपनिषद मंत्र १३ #ईशोपनिषद #उपनिषद #यजुर्वेद #विद्वान

वेदों की दिशा

।। ॐ।।
अ॒न्धन्तमः॒ प्र वि॑शन्ति॒ येऽवि॑द्यामु॒पास॑ते। 
ततो॒ भूय॑ऽइव॒ ते तमो॒ यऽउ॑ वि॒द्याया॑ र॒ताः ॥१२ ॥

पद पाठ

अ॒न्धम्। तमः॑। प्र। वि॒श॒न्ति॒। ये। अवि॑द्याम्। उ॒पास॑त॒ इत्यु॑प॒ऽआस॑ते ॥ ततः॑। भूय॑ऽइ॒वेति॒ भूयः॑ऽइव। ते। तमः॑। ये। ऊँ॒ऽइत्यूँ॑। वि॒द्याया॑म्। र॒ताः ॥

(ये) जो मनुष्य (अविद्याम्) अनित्य में नित्य, अशुद्ध में शुद्ध, दुःख में सुख और अनात्मा शरीरादि में आत्मबुद्धिरूप अविद्या उसकी अर्थात् ज्ञानादि गुणरहित कारणरूप परमेश्वर से भिन्न जड़ वस्तु की (उपासते) उपासना करते हैं, वे (अन्धम्, तमः) दृष्टि के रोकनेवाले अन्धकार और अत्यन्त अज्ञान को (प्र, विशन्ति) प्राप्त होते हैं और (ये) जो अपने आत्मा को पण्डित माननेवाले (विद्यायाम्) शब्द, अर्थ और इनके सम्बन्ध के जानने मात्र अवैदिक आचरण में (रताः) रमण करते (ते) वे (उ) भी (ततः) उससे (भूय इव) अधिकतर (तमः) अज्ञानरूपी अन्धकार में प्रवेश करते हैं ॥

(These) human beings (avidyam) who are eternally in eternity, pure in impure, happiness in sorrow and self-enlightened avidya in self-righteousness, worship the root thing other than God, that is, without knowledge, without virtue, they (blind, tamah)  The dark and extreme ignorance of the person (pr, visinti) is attained and (these) those who believe their soul as a scholar (Vidyāyam), know (rātāh) in the mere impersonal conduct (te) they (te)  A) also (s) enter into (dark) dark darkness mostly (tam).

ईशोपनिषद मंत्र १२ #ईशोपनिषद #उपनिषद #परमात्मा #worship

वेदों की दिशा

।। ॐ ।।
सम्भू॑तिं च विना॒शं च॒ यस्तद्वेदो॒भय॑ꣳ स॒ह।
वि॒ना॒शेन॑ मृ॒त्युं ती॒र्त्वा सम्भू॑त्या॒मृत॑मश्नुते ॥११ ॥

पद पाठ

सम्भू॑ति॒मिति॒ सम्ऽभू॑तिम्। च॒। वि॒ना॒शमिति॑ विऽना॒शम्। च॒। यः। तत्। वेद॑। उ॒भय॑म्। स॒ह ॥ वि॒ना॒शेनेति॑ विना॒शेन॑। मृ॒त्युम्। ती॒र्त्वा। सम्भू॒त्येति॒ सम्ऽभू॑त्या। अ॒मृत॑म्। अ॒श्नु॒ते॒ ॥

हे मनुष्यो ! (यः) जो विद्वान् (सम्भूतिम्) जिसमें सब पदार्थ उत्पन्न होते उस कार्य्यरूप सृष्टि (च) और उसके गुण, कर्म, स्वभावों को तथा (विनाशम्) जिसमें पदार्थ नष्ट होते उस कारणरूप जगत् (च) और उसके गुण, कर्म, स्वभावों को (सह) एक साथ (उभयम्) दोनों (तत्) उन कार्य्य और कारण स्वरूपों को (वेद) जानता है, वह विद्वान् (विनाशेन) नित्यस्वरूप जाने हुए कारण के साथ (मृत्युम्) शरीर छूटने के दुःख से (तीर्त्वा) पार होकर (सम्भूत्या) शरीर, इन्द्रियाँ और अन्तःकरणरूप उत्पन्न हुई कार्यरूप धर्म में प्रवृत्त करानेवाली सृष्टि के साथ (अमृतम्) मोक्षसुख को (अश्नुते) प्राप्त होता है ॥

Hey man  (Yah) The scholar (sambhuti) in which all matter arises, the working form (f) and its qualities, deeds, nature and (nishtram) in which the material is destroyed due to the world (f) and its qualities, deeds, nature (  Cum) together (ubhayam) knows both the (tatha) those work and causal forms (veda), he (scholar) is permeated (tirthva) by the grief of leaving the body (mriyātam) with the known cause.  The body, the senses and the inner form of action, Moksasukh (Ashnute) is attained with the (Amritam) creation that leads in religion.

ईशोपनिषद मंत्र ११ #ईशोपनिषद #उपनिषद #मोक्ष #यजुर्वेद

वेदों की दिशा

।। ॐ।।
अ॒न्यदे॒वाहुः स॑म्भ॒वाद॒न्यदा॑हु॒रस॑म्भवात्। 
         इति॑ शुश्रुम॒ धीरा॑णां॒ ये न॒स्तद्वि॑चचक्षि॒रे ॥१० ॥

पद पाठ

अ॒न्यत्। ए॒व। आ॒हुः। स॒म्भ॒वादिति॑ सम्ऽभ॒वात्। अ॒न्यत्। आ॒हुः। अस॑म्भवा॒दित्यस॑म्ऽभवात् ॥ इति॑। शु॒श्रु॒म॒। धीरा॑णाम्। ये। नः॒। तत्। वि॒च॒च॒क्षि॒र इति॑ विऽचचक्षि॒रे ॥


हे मनुष्यो ! जैसे हम लोग (धीराणाम्) मेधावी योगी विद्वानों से जो वचन (शुश्रुम) सुनते हैं (ये) जो वे लोग (नः) हमारे प्रति (तत्) (विचचक्षिरे) व्याख्यानपूर्वक कहते हैं, वे लोग (सम्भवात्) संयोगजन्य कार्य्य से (अन्यत्, एव) और ही कार्य्य वा फल (आहुः) कहते (असम्भवात्) उत्पन्न नहीं होनेवाले कारण से (अन्यत्) और (आहुः) कहते हैं, (इति) इस बात को तुम भी सुनो ॥

Hey man  Just like we (dhiramanam) hear the words (shushrum) from the meritorious yogi scholars (these) who they (nah) say to us (tatha) (vichchakshire), they (sambhavat) from coincidental work (otherwise, and  ) And the work or fruit (ahuah) says (unambiguously), for reasons that do not arise (otherwise) and (ahuah) says, (Iti) you listen to this thing also
.
ईशोपनिषद मंत्र १० #ईशोपनिषद #उपनिषद #मनुष्य

वेदों की दिशा

।।ॐ।।

अ॒न्धन्तमः॒ प्र वि॑शन्ति॒ येऽस॑म्भूतिमु॒पास॑ते। 
ततो॒ भूय॑ऽइव॒ ते तमो॒ यऽउ॒ सम्भू॑त्या र॒ताः ॥९ ॥

पद पाठ

अ॒न्धम्। तमः॑। प्र। वि॒श॒न्ति॒। ये। अस॑म्भूति॒मित्यस॑म्ऽभूतिम्। उ॒पास॑त॒ इत्यु॑प॒ऽआस॑ते ॥ ततः॑। भूय॑ऽइ॒वेति॒ भूयः॑ऽइव। ते। तमः॑। ये। ऊँ॒ऽइत्यूँ॑। सम्भू॑त्या॒मिति॒ सम्ऽभू॑त्या॒म्। र॒ताः ॥९ ॥

(ये) जो लोग परमेश्वर को छोड़कर (असम्भूतिम्) अनादि अनुत्पन्न सत्व, रज और तमोगुणमय प्रकृतिरूप जड़ वस्तु को (उपासते) उपास्यभाव से जानते हैं, वे (अन्धम्, तमः) आवरण करनेवाले अन्धकार को (प्रविशन्ति) अच्छे प्रकार प्राप्त होते और (ये) जो (सम्भूत्याम्) महत्तत्त्वादि स्वरूप से परिणाम को प्राप्त हुई सृष्टि में (रताः) रमण करते हैं (ते) वे (उ) वितर्क के साथ (ततः) उससे (भूय इव) अधिक जैसे वैसे (तमः) अविद्यारूप अन्धकार को प्राप्त होते हैं ॥

(These) Those who know God (Asambhuti) except the infinitely unintelligible entity, Raja and Tamogunamya, the root object of nature (Upasate), they (Andam, Tama), the covering darkness (the entry) will get well and (these)  ) Those who achieve the result of the (Sambhutyam) Mahātattvādī form (Rātāh) in the creation (Ram): They (U) with vitarka (s) (more) than (the earth) are more like (Tama) in the dark darkness.  
 
ईशोपनिषद मंत्र ९ #उपनिषद #ईशोपनिषद

वेदों की दिशा

।।ॐ।।

यस्मि॒न्त्सर्वा॑णि भू॒तान्या॒त्मैवाभू॑द्विजान॒तः।
 तत्र॒ को मोहः॒ कः शोक॑ऽएकत्वम॑नु॒पश्य॑तः ॥

पद पाठ

यस्मि॑न्। सर्वा॑णि। भू॒तानि॑। आ॒त्मा। ए॒व। अभू॑त्। वि॒जा॒न॒त इति॑ विऽजान॒तः ॥ तत्र॑। कः। मोहः॑। कः। शोकः॑। ए॒क॒त्वमित्ये॑क॒ऽत्वम्। अ॒नु॒पश्य॑त॒ऽइत्य॑नु॒पश्य॑तः ॥



हे मनुष्यो ! (यस्मिन्) जिस परमात्मा, ज्ञान, विज्ञान वा धर्म में (विजानतः) विशेषकर ध्यानदृष्टि से देखते हुए को (सर्वाणि) सब (भूतानि) प्राणीमात्र (आत्मा, एव) अपने तुल्य ही सुख-दुःखवाले (अभूत्) होते हैं, (तत्र) उस परमात्मा आदि में (एकत्वम्) अद्वितीय भाव को (अनुपश्यतः) अनुकूल योगाभ्यास से साक्षात् देखते हुए योगिजन को (कः) कौन (मोहः) मूढावस्था और (कः) कौन (शोकः) शोक वा क्लेश होता है अर्थात् कुछ भी नहीं ॥

Hey human  (Yasmine) Looking at the divine, knowledge, science or religion (triumphantly) especially (with attention), all (ghostly) beings (ghosts) are mere (soul, and) just like themselves (unhappy), (tatra) that  Seeing the (ekatvam) unique feeling in the divine etc. (inappropriately), with a favorable yoga practice, Yogijan has (a) who (moh), stupor and (a) who (mourn) mourn or affliction means nothing.

ईशोपनिषद मंत्र ८ #ईशोपनिषद #उपनिषद #Upnishad

वेदों की दिशा

।।ॐ।।

यस्मि॒न्त्सर्वा॑णि भू॒तान्या॒त्मैवाभू॑द्विजान॒तः।
 तत्र॒ को मोहः॒ कः शोक॑ऽएकत्वम॑नु॒पश्य॑तः ॥


जो विद्वान् संन्यासी लोग परमात्मा के सहचारी प्राणीमात्र को अपने आत्मा के तुल्य जानते हैं अर्थात् जैसे अपना हित चाहते वैसे ही अन्यों में भी वर्त्तते हैं, एक अद्वितीय परमेश्वर के शरण को प्राप्त होते हैं, उनको मोह, शोक और लोभादि कदाचित् प्राप्त नहीं होते। और जो लोग अपने आत्मा को यथावत् जान कर परमात्मा को जानते हैं, वे सदा सुखी होते हैं ॥७ ॥


Those scholarly ascetics who know God's fellow-beings as equal to their souls, ie, who wish for their own interests, likewise turn to others, receive the refuge of a unique God, may not find attachment, grief and covetousness. And those who know God by knowing their soul as they are, they are always happy.

ईशोपनिषद मंत्र ७ #ईशोपनिषद
#उपनिषद
#God

वेदों की दिशा

।। ॐ।।
यस्तु सर्वा॑णि भू॒तान्या॒त्मन्ने॒वानु॒पश्य॑ति।
 स॒र्व॒भू॒तेषु॑ चा॒त्मानं॒ ततो॒ न वि चि॑कित्सति ॥

हे मनुष्यो ! जो लोग सर्वव्यापी, न्यायकारी, सर्वज्ञ, सनातन, सबके आत्मा, अन्तर्यामी, सबके द्रष्टा परमात्मा को जान कर सुख-दुःख हानि-लाभों में अपने आत्मा के तुल्य सब प्राणियों को जानकर धार्मिक होते हैं, वे ही मोक्ष को प्राप्त होते हैं ॥

Hey human ! Those who are omnipotent, judicious, omniscient, everlasting, soul of all, transcendental, knowing the divine of all, are righteous by knowing all beings like their souls in happiness and sorrow, loss and benefits, they attain salvation.

ईशोपनिषद मंत्र ६ #ईशोपनिषद
#यजुर्वेद
#human

वेदों की दिशा

।। ॐ।।

तदे॑जति॒ तन्नैज॑ति॒ तद् दू॒रे तद्व॑न्ति॒के। तद॒न्तर॑स्य॒ सर्व॑स्य॒ तदु॒ सर्व॑स्यास्य बाह्य॒तः ॥


हे मनुष्यो ! वह ब्रह्म मूढ़ की दृष्टि में कम्पता जैसा है, वह आप व्यापक होने से कभी नहीं चलायमान होता, जो जन उसकी आज्ञा से विरुद्ध हैं, वे इधर-उधर भागते हुए भी उसको नहीं जानते और जो ईश्वर की आज्ञा का अनुष्ठानवाले वे अपने आत्मा में स्थित अति निकट ब्रह्म को प्राप्त होते हैं, जो ब्रह्म सब प्रकृति आदि के बाहर-भीतर अवयवों में अभिव्याप्त हो के अन्तर्यामिरूप से सब जीवों के सब पाप पुण्यरूप कर्मों को जानता हुआ यथार्थ फल देता है, वही सबको ध्यान में रखना चाहिये और इसी से सबको डरना चाहिये ॥

Hey man He is like a Kampta in the sight of Brahman Mudha, he never moves by being wide, people who are against his command, they do not know him while running around and they who are in the soul of those who obey God. Brahma attains very near, which Brahm is present in all the elements inside and outside of nature etc. It gives the real fruits of knowing all the virtuous deeds of all the living beings in the inner world, that should be kept in mind and fear everyone Want to

ईशोपनिषद मंत्र ५ #यजुर्वेद
#ईशोपनिषद
#ज्ञान
#डर
loader
Home
Explore
Events
Notification
Profile