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Autumn दशरथ खुश थे दो वचन देके। प्राणों से प्यारी

Autumn दशरथ खुश थे दो वचन देके।
प्राणों से प्यारी कैकेई को प्रण देके।
कहां पता था राम देना होगा।
प्रण के बदले प्राण देना होगा।

पता होता तो ये धर्म न करते।
चाहे कितना भी पूण्य मिलें ये कर्म न करते।
होनी अटल है टल नहीं सकता है।
जो होना है होगा, वो बदल नहीं सकता है।

होना था इसी कारण वचन का परीक्षा।
करना था पूर्ण राम का ईच्छा।
देवताओं ने भी जोर लगा रखा था।
महलों से हो बाहर राम शोर मचा रखा था।

हो राम का वनवास आरंभ।
दुष्टों का हो विनाश आरंभ।
संत जनों का, संताप मिटे।
भक्तों का हो रक्षा, धरा से पाप मिटे।

©Narendra kumar
  #autumn
narendrakumar3882

Narendra kumar

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