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जब तलक दिल में मुहब्बत न हुई थी पैदा। ये ज़मीं साद

जब तलक दिल में मुहब्बत न हुई थी पैदा।
ये ज़मीं सादा थीं, जन्नत न हुई थी पैदा।।


जिंदगी में कोई लज्जत न हुई थी पैदा।
जेहन और फिक्र में अजमत न हुई थी पैदा।


जब तलक दिल में मुहब्बत न हुई थी पैदा।
मेरे अफकार के फूलों में बहार आयी न थी।


मेरे अशआर में रंगीनी -ओ-रानाई न थी।
 मेरे तखईल  में नुदरत न  हुई  थी पैदा।


जब तलक दिल में मुहब्बत न हुई थी पैदा।
ये ज़मीं  सादा थीं,  जन्नत न हुई थी पैदा।

©दीप बोधि
  #jabtalmuhbbt