पर्यावरण और मनुष्य को लेकर, कहने को कुछ बाकी न रहा, है वो तो इंसान अनोखा, समझाने को अब कुछ बाकी न रहा। देखकर कुदरत का प्रकोप, अनदेखा ही तो कर रहा है इंसान, इससे भी जब सीख-समझ नहीं,बताने को कुछ बाकी न रहा। कर रहा है अपने मन की, इतना भी अनजान न होगा ख़ुदा से, झूमो एक दिन, होगा रोज़ का हिसाब, कि कुछ बाकी न रहा। रह लो जितना भी रहना है तुमको दीन-दुनिया से यूँही बेख़बर, जाने-अनजाने का भुगतोगे अब, कहने को कुछ बाकी न रहा। 🎀 Challenge-225 #collabwithकोराकाग़ज़ 🎀 यह व्यक्तिगत रचना वाला विषय है। 🎀 कृपया अपनी रचना का Font छोटा रखिए ऐसा करने से वालपेपर खराब नहीं लगता और रचना भी अच्छी दिखती है। 🎀 विषय वाले शब्द आपकी रचना में होना अनिवार्य नहीं है। 8 पंक्तियों में अपनी रचना लिखिए।