इक बार चले आओ सरकार जरूरत है। हर ओर उदासी है हर ओर मुसीबत है। पैगाम मेरा ऊधौ कह देना किशन से तुम, फुर्कत में ये गोकुल की बेजान सी सूरत है। इक साल गया फिर से जीवन के तिजोरी से, है शुक्र की जिंदा हैं मोहन की इनायत है। संताप मिले मुझको पर साथ मिले तेरा, हे!कृष्ण तेरी हूंँ मैं तू मेरी मुहब्बत है। इस साल खुशी देना संसार को हे!मोहन, उस साल से सबको तो बेहद ही शिकायत है। बदनाम सियायत पर अब शोर शराबा क्यूंँ, जो ताज दिया तुमने उसकी ही अजीयत है। २२१ १२२२ २२१ १२२२ (गागाल लगागागा)×२ #मौर्यवंशी_मनीष_मन #ग़ज़ल_मन #नववर्ष #newyear #मनीष_मन