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मन तुम्हारा रोज बदले लाख कपड़े, ख्वाहिशों का तन छु

मन तुम्हारा रोज बदले लाख कपड़े, ख्वाहिशों का तन छुपाये या सजाये। 
हम तुम्हारे दर्द में शामिल रहे थे, हम तुम्हारे दर्द में शामिल रहेंगे।।

लादकर सपनों की दुनिया चल पड़े हैं, इस धरा से उस गगन को जोड़ना है। 
एक झोंका सा उठा है आज मन में, रुख हवाओं का हमें ही मोड़ना है। 
आज कितनी भी विरोधी कोशिशें हों, या चुनौती दें हमारी वेदनाएँ 
बह चले हैं जिस दिशा में प्राण सत्वर, उस दिशा में हम निरन्तर ही बहेंगे।।

हाथ में लेकर तुम्हारा हाथ हमने, प्रेम के पन्ने हजारों पढ़ लिये थे। 
भावना की तान में अनुरक्त मन ने, छंद स्वप्नों के मनोहर गढ़ लिये थे। 
तुम भले कर दो उपेक्षित उन पलों को, अनसुनी कर दो हृदय की याचनाएँ 
किन्तु हम सम्भावना के गाँव जाकर, प्रश्न जो मन में पड़े हैं, सब कहेंगे।।

कुछ समय ने फाड़ डाले थे अचानक, कुछ टॅगे सुधियों की झोली में दिखे थे। 
खो गये वे पृष्ठ जीवन के कहाँ पर, कल जो हमने साथ में मिलकर लिखे थे। 
प्रेम के अवशेष भी अब क्या मिलेंगे, किन्तु यदि तुम चाहते हो तो नियत है 
हम समय की लाख परतें भी पलटकर, उन फटे पृष्ठों को चुनकर जोड़ देंगे।

©RJ राहुल द्विवेदी 'स्मित'
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