वो बरसात का दिन था मैं रोता हुआ घर आया था, मुझे याद है उस दिन उसने मुझे छड़ी से सूंत सूंत कर मेरा पूरा बदन सुजाया था नयी घड़ी को मैं जो पानी में डुबा के लाया था कपड़ो को तो जैसे कीचड़ में निचोड़ के लायाथा घूरती आँखों से फिर उसने टेवल पर प्लेट पटकर चाय पकौड़े खिलाया पिलाया था कुछ देर बाद ही उसने फिर रो रो कर हर जख्म पर मलहम लगया था पहले जख्म दिये फिर की दवा अजब का प्रेम जताया था माँ थी इसलिये मैं उससे कुछ न कह पाया था मुझे याद है वो बरसात का दिन था मैं रोता हुआ घर आया था पारुल शर्मा बरसात का दिन था मैं रोता हुआ घर आया था मुझे याद है उस दिन उसने मुझे छड़ी से सूंत सूंत कर मेरा पूरा बदन सुजाया था नयी घड़ी को मैं जो पानी में डुबा के लाया था कपड़ो को तो जैसे