ग़ज़ल :- दो कदम चलकर जताना आ गया । आज ये कैसा जमाना आ गया ।।१ होश तो आया नहीं उनको मगर । राह उल्फ़त की दिखाना आ गया ।।२ पायलें तुमको बजाना आ गया । नींद प्रियतम की उड़ाना आ गया ।।३ छुप गये डरकर वहीं हो तुम सदा । सामने जब भी सयाना आ गया ।।४ जुल्फ़ अपनी बाँधकर देखो कभी । अब इन्हें खुलकर उलझना आ गया ।।५ हर अदा तेरी मुझे कातिल लगी । किस तरह तुझको सताना आ गया ।।६ भटकना हमको नही है राह में । बाँह का तेरी ठिकाना आ गया ।।७ नाम प्रियतम का लिखो तुम हाथ में । अब हिना तुमको रचाना आ गया ।।८ एक ख्वाबों की यहाँ दुनिया बना । प्रीत का फिर हर तराना आ गया ।।९ आपकी हर बात में जादू दिखा । छोड़कर दुनिया दिवाना आ गया ।।१० नील अंबर कह रहा हमसे प्रखर । लौटकर तेरा खिलौना आ गया ।।११ ०१/०९/२०२३ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR ग़ज़ल :- दो कदम चलकर जताना आ गया । आज ये कैसा जमाना आ गया ।।१ होश तो आया नहीं उनको मगर । राह उल्फ़त की दिखाना आ गया ।।२