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जब भी ईद हुई तेरी दीद हुई यादों में ही सही तस्दीक

जब भी ईद हुई तेरी दीद हुई
यादों में ही सही तस्दीक हुई
कौन है जब पूछा किसी ने
जिक्र तेरा खुशामदीद हुई
ऐसा क्या था जब उसने पूछा
बोली और मैं सूची से नाफेहरिस्त हुई
जल गई न !मैंने बोला तू!
अब बता ही देता हूं
था यार मेरा वो, उससे मेरा याराना था
उसका अंदाज़े बायां क्या कहूं
कितना अरिफाना था
शाम हमारा सालो भर कटता संग संग
अनोखा मेरा दोस्ताना था 
जिक्र ईद का छिड़ा तो सुनो हकीकत
यही कोई तीन सालों की यारी थी
साथ पढ़ते एक शहर में
माहे रमजान तीन दफा आया था
बगैर यार वैसे भी नही कटती थी
रोजा में महीने भर समझो
मेरा नाश्ता और उसकी इफ्तारी थी
फिर आता ईद उल फितर क्या कहने
अब मस्ती की बारी थी
ये सब कुछ मेरी मेरे दोस्त आरिफ की 
एक न भुलनेवाली पारी थी
आज वो मुझसे रूठा है
पता नही कहा दूर वो बैठा है
फेसबुक पर भी ढूंढा है
नही मिलता वो  कैसा है
कितना उसको मैं याद आता नही पता
मुझको बहुत वो आता है
ईद की इफ्तारी और सेवई संग
गले लगा कर दिल से लगाना
यार बहुत याद आता है
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(दोस्त आरिफ को समर्पित)
आखिर बार कोलकाता में 30 साल पहले मिले!

©ranjit Kumar rathour
  ईद को दीद हुई(मित्र आरिफ को समर्पित)
#poetry month

ईद को दीद हुई(मित्र आरिफ को समर्पित) poetry month #शायरी

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