शून्य से शिखर की यात्राऐं और अंतरंगता अपेक्षित भावों की अकेले ही तय करता रहा मन वस्तुतः विलगाव में भी समेकित समग्रता का बो़ध हावी रहा अंतर्मुखी मन चिंतन अभिशप्त सीमाऐं तोड़कर विविधताओं में सब कुछ वैसा हीं ढूंढता है जिसका भान सिर्फ मुझे है स्वयं के बुने प्रश्नों के दुशाले की उष्मा में समशीतोष्ण मृगतृष्णा!! प्रीति #मनोभाव #मृगतृष्णा #yqdidihindi