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Bharat Bhushan pathak
केवल आजादी नाम नहीं ,है आत्मा यह हर जन की। विकास को हो भोजन चाह ,इस भांति आहार तन की।। मन को जो देती शीतलता,समीर वह ठंडी आजादी। अभिमान हो जिस पर सदा ही,वही सम्मान आजादी।। ©Bharat Bhushan pathak #आजादी#स्वतंत्रता#आजादीमेरीनज़रमें #Freedom#freedommeans #मनोभाव
RAHUL VERMA
सुनो सखी... मैं तुम्हें आज एक प्रेम पत्र✍️ लिख रहा हूं। इस प्रेम पत्र...को तुम मेरा ह्रदय पत्र.. मेरा मनोपत्र या मेरा समक्ष पत्र समझ सकती हो। जंहा तक मुझे लग रहा है जब तुम ये पत्र पड़ रही होगी तो तुम्हे थोड़ी हैरानी और मन में हँसी भी आ रही होगी। प्रेम पत्र पढ़ते हुए तुम सोच रही होगी कि यह कैसा मैंने दोस्त बनाया है जो इस आधुनिक दुनिया में जंहा सोशल मीडिया जैसे- फेसबुक, व्हाट्सएप, टि्वटर जैसे पत्राचार होते हुए भी एक पत्र लिख रहा है। तो मैं तुम्हे बता दूं ....मेरा मनना है कि जब कोई इंसान पत्र पढ़ रहा होता है तो वो उस लिखे जाने वाले के मन को समझता तो है ही साथ ही साथ उन लिखे शब्दो को स्पर्श करके लिखने वाले के मन को भी स्पर्शता को महसूस करता है। उसकी लिखावट को देखता है , जो बात आज कल के सोशल मीडिया जैसे प्लेटफॉर्म पर लिखे कंप्यूटरकृत लिखावट में नही होती । प्रेम पत्र का अगला भाग जल्द ही ........🙏 एक अरसा हुआ अल्फाज़ो को स्याही मे भिगा देखे ... कम्बखत मोबाइल ने चिट्ठीयों का वजूद ही खत्म कर दिया ..! ✍️📝📩📧 #चिठ्ठी_ना_कोई_सन्देश_जाने_वो #चिठ्ठी_और_तुम #प्रेमपत्र #मनोभाव #लेखनी_एक_अभिव्यक्ति #yqbaba #yqdidi #yqaestheticthoughts
i am Voiceofdehati
आपकी “पहचान” आपके संघर्ष से नहीं अपितु आपकी सफलता से है... नीरज चोपड़ा ओलंपिक में मेडल जीतने से पहले कोई नहीं जानता था यहां तक कि हरियाणा के लोग भी लेकिन पदक जीतने के बाद हरियाणा के सब लोग उन्हें अपना बता रहे हैं महाराष्ट्र वाले अपना बता रहे मराठा जो है यानी आप सफलता प्राप्त करने के लिए भूखे रहे, मजदूरी की, नौकर बने कोई नहीं पूछता है? लेकिन अगर आप सफल हो गए तो सब बोलने लगते हैं मुझे पता था ये जरूर होगा, इसकी काबिलियत पर मुझे पहले से ही भरोसा था,ये हमारे गांव का है मेरे राज्य का है।
REETA LAKRA
इंसान को इंसान समझाता है कि परिवर्तन ही जीवन है। वक्त के साथ बदलाव जरूरी है। फिर वही इंसान, इंसान के बदल जाने पर शीघ्रता से कटुता उगलने लगता है। १४०/३६५@२०२१ पसंद नापसंद। इंसान के दो तरह के भाव एक ही बात पर G yreeta-lakra-9mba #मनोभाव
Anamika
उम्र.. चालीस और पचास की.. मेनोपॉज , मूड़ स्विंग.. शायद मानसिक विखंडित, या बिखरने लगता है , अस्तित्व एक बार यूं ही नहीं करती वो खुलासा जीती है शायद किसी सोच में... कहीं जीवन का आकर्षण लुप्त न हो जायें किसी भंवर में.. कभी फाइब्राइड़,कभी सर्वाइकल, कभी थाइराइड़, कभी अस्वाभिक स्त्राव अन्जाना मेनोपॉज ,या मूड़स्विंग जकड़ लेता है उसके मनोभावों को... जीवन के अनबूझे,जटिल प्रक्रियाओं से गुजरती है वो औरत....…. #मेनोपॉज #मूड़स्विंग #मनोभाव #औरत #स्त्रीअस्तित्व #महिलाओं_को_समर्पित #तूलिका
Preeti Karn
इन्द्रधनुष सदृश सतरंगी नहीं परञ्च रंग जाते मनोभाव मनोहारी ! परिवेश की आभा से अभिसिंचित। सहजता से सोखकर मृदुल मोहक समरस अवशोषित रूप रस गंध एकात्म होकर भावों से नूतन उद्गम के द्वार खोलकर बहा देती अजस्र धारा माधुर्य अभिशप्त हरसिंगार के शब्द फूल झड़ झड़ कर बिखरते और कुम्हला जाते। संवरण तात्कालिक क्षणिक बोधमात्र..... विलीन हो जाता अस्तित्व दिशा दिगंत की अनंत गहराइयों में.. व्याप्त रहती भीनी सुगंध स्मृति अवशेष.... प्रीति #अनकही #मनोभाव #परिवेश #रचना #yqhindi#yqhindiquotes
Preeti Karn
शून्य से शिखर की यात्राऐं और अंतरंगता अपेक्षित भावों की अकेले ही तय करता रहा मन वस्तुतः विलगाव में भी समेकित समग्रता का बो़ध हावी रहा अंतर्मुखी मन चिंतन अभिशप्त सीमाऐं तोड़कर विविधताओं में सब कुछ वैसा हीं ढूंढता है जिसका भान सिर्फ मुझे है स्वयं के बुने प्रश्नों के दुशाले की उष्मा में समशीतोष्ण मृगतृष्णा!! प्रीति #मनोभाव #मृगतृष्णा #yqdidihindi
Preeti Karn
जरा जरा सी बात पर खुद से रूठ जाता है, जाने क्यों आजकल बेवजह टूट कर बिखरता क्यूं है! एक अरसे से साथ लिए फिरते थे, जाने क्यों अब न सम्हलता क्यूं है! प्रीति #मनोभाव #yqdidi #yqdidihindi
Preeti Karn
प्रकृति के रंगों की अभिव्यंजना सुखद अहसास कुछ संवेदनाएं मेरे बेरंग पन्नों में सब कुछ ही तुम्हारा है। विरह व्याकुल व्यथित मन की व्यथा कुंठा घनीभूत होता तिमिर अंतस पसरा उद्गम सृजन प्रवाह खुशियों में सराबोर आनंद अथाह प्रेरित सब तुम्हीं से हैं मेरे बेरंग पन्नों में। क्षणिक उन्माद विकल प्राणों का अवसाद कुछ मौसमी रंग पतझड़ बदरंग सृजन रचनाओं का विन्यास मात्र ही तो है भावों का मेरा कुछ भी नहीं सब कुछ ही तुम्हारा है। प्रीति #मनोभाव # उद्गम #सृजन #yqdidi #YourQuote poetry
Preeti Karn
भोर का प्रथम प्रहर ओस की बूंदों से लथपथ मनोभाव हरसिंगार के पुष्प से लदे गुल्म से टूटकर झड़ते बिखरते शब्द कोरे पन्ने पर सफेद नारंगी कविताएँ मंद सुगंध सुवासित उंगलियों के पोर से वाष्पित होती नमी का क्षणिक माधुर्य अंतर्मन की स्मृति में ठहरे अहसास। वस्तुतः इन्हीं ठिकाने की तलाश थी मनोभावों को जहां से सुवासित होती रहे परिकल्पना। प्रीति #मनोभाव #yqdidi #yqbaba