बेफ़िकर–बेज़िकर न कहीं कोई दिलासा किसी जीत को न हार को। अनकही–अनसुनी मैं चुनूं कोई अपनी भाषा स्वयं से मौन संवाद को। तोड़ते – तोलते इन शब्दों के नगर से दूर मैं चलूँ मैं बहु संग लिए वात को। मैं रचूं अपना जीवन नन्हीं सी है ये अभिलाषा जागूँ कि अब नई प्रभात हो ©अबोध_मन//फरीदा #अबोध_मन #अबोध_poetry #nurseryrhyme #अक्कड़_बक्कड़_बम्बे_बो